Monday, June 23, 2025

मकाम

तो मुहब्बत में...

मकाम अब ये है,

तुम मुझे ढूंढते हो,

मैं दिल ढूंढता हूं..!


ये कैसा सफर है अन्तस,

कभी रास्ता ढूंढता हूं,

कभी मंजिल ढूंढता हूं..!


क्यों तुमसे मिलने में,

तकल्लुफ है,

क्यों बेचैनी है,

हल ढूंढता हूं तो

कभी मुश्किल ढूंढता हूं


तुम्हारे साथ दिल का

ये सौदा जंग हुआ जैसे

पेशियां हैं, मुकदमे हैं,

कभी मुजरिम ढूंढता हूं

कभी मुवक्किल ढूंढता हूं


मैदान ए कर्बला हुई

जिंदगी जैसे,

शहसवार रहा 

के तिफ्ल ढूंढता हूं


तुझे पहचान ने का जरिया,

वो दिल ढूंढता हूं,

जांघ पे तिल ढूंढता हूं


कभी हल ढूंढता हूं,

मुश्किल ढूंढता हूँ,

कभी तिल ढूंढता हूं..!!

हिसाब

 मेरे अशआरों में भी

कोई नक्श आयेगा,

उनके भी मायने होंगे


इंसान हश्र में खड़ा होगा

सामने आईने होंगे


इल्म जमी पे खड़ा होगा,

बुत सूली पे टंगे होंगे


उन सबका वजन होगा अंतस

जो वादे तुमने हमसे कहे होंगे


सब पल ठहरे होंगे

वक्त के सब कांटे

वहीं रुके होंगे


तुम होगे, हम होंगे,

और सब होंगे,..!!


वहां, वसीयत पढ़ी जाएगी,

इमदाद होगी, फैसले होंगे


ये सब होगा,

जब बस हम होंगे

अकेले होंगे..!!


हो चुका होगा हमारा होना

सब खयाल भी,

हो चुके होंगे..!


क्या ही मंजर होगा

बस तुम होगे

और हम होंगे..?


इतनी तफसीली दुनिया से

क्या ही वास्ता होगा

ज़र्रा से तुम होगे

सिफर से हम होंगे


एक लम्हा होगा

तुम होगे और 

हम होंगे..!!