Wednesday, May 14, 2014

स्थिर सरकार और ताले....!

ये आर्यावत है,
पुरु ही,
सुलझाएंगे गुत्थियाँ....

ये भ्रम भी टूट गया,
की दोबारा कहर ढाने,
सिकंदर नही आएगा...!

संविधानो में,
बढ़ता रहेगा चकल्लस,
यदि न बने नागरिक, नदियाँ....

सदियों से प्यासी,
गंगोत्री के लिए,
कोई स्वार्थी,
समंदर नही आएगा...!

लोकतंत्र के,
दरवाजो पे लग गया,
स्थिर सरकार की,
मांग का ताला.......!

अब आम आदमी,
संसद के,
अन्दर नही आएगा....!

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