Thursday, May 16, 2013

जिंदगी.....!

रौशनी लबरेज़ कुछ,
कुछ परछाइयों के दिन...!

सुलगती शामे,
धुंधलके सवेरे कुछ,
सतरंगी मिलन की दोपहर कोई,
कुछ तन्हाइयों के दिन.....!

मुहब्बतों के झीने परदे कुछ,
कभी इश्क तार तार,
वफाओं की खुशबुएं कभी,
कभी रुसवाईयों के दिन...!

रौशनी लबरेज़ कुछ,
कुछ परछाइयों के दिन...!

मेरा तुझसे लिपटना कभी,
कभी खफ़ा खफ़ा होना,
उदासियों के दिन,
कुछ अंगड़ाईयों के दिन.....!

कुछ तेरे दामन के लम्हे,
कुछ मेरे वजूद के पल छिन....!

अब समझ रहा हूँ,
जिंदगी क्या थी...!

बस "तेरे" कुछ दिन
और "मेरे" कुछ दिन....!

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

जिंदगी कुछ भी नहीं तेरी, मेरी कहानी है ...