Friday, March 29, 2013

मियाद...।

एक मुद्दत से परछाई,
पीछे पीछे चली आती है,
और तुम...?

बरसों से,
मेरे इंतज़ार की,
वजह बन कर.....!

मेरी नज़रों की मियाद से,
कोसों परे हो...

बेशक मुझे दिलासे,
दे गए हो,
पर इनकी भी तो मियाद है...!

अब मुकरने लगे हैं....

तुम्हारी दुहाई दे कर,
तुम जैसे ही,
अंधेरों में, फ़ना होने लगे हैं...

हाँ उन्ही अंधेरों से,
अबअजनबी सा दर्द,
नमूदार होता है....!

कभी मैं इसके पार होता हूँ,
कभी ये मेरे पार होता है.....।

इन परछाइयों, फुरकत,
और अंधेरों के दरम्यान,
कभी बेबसी की टीस है,
कभी सुर्खरू दर्द,
गुलज़ार होता है....!

दुआओं में तो,
आखिरी अंजाम माँगा है इसका,
हर सुबह,हर शाम,
हर दफा,
न जाने क्यों हर बार होता है...?

यूं तो तुमसे भी परे,
और जहाँ भर से,
पर कोई तो समझ लेगा,
बाज़ दफा, झूठा एतबार होता है...!

कमबख्त क्या ये है...?
अंजाम-ऐ-इश्क...?

दीवाना ही,
हर बार, गुनाहगार होता है......?

1 comment:

N I D D A R A R T said...

कमबख्त क्या ये है...?
अंजाम-ऐ-इश्क...?

दीवाना ही,
हर बार, गुनाहगार होता है......?

umda lines ,,, behtreen,,, en ke aage kuch nhi