Saturday, April 7, 2012

अजीब है न........?

सुबह कुछ ज्यादा ही लाल है
या तुम्हारी लिपिस्टिक कर रंग
फैला है थोडा सा...



ट्राफिक में फसा हूँ,
सोच रहा हूँ,
तुम्हारी अंगड़ाई ख़त्म हो,
तो आफिस पहुचुं......



तुम्हे याद करता हूँ,
औफ़िस की कॉफ़ी में,
चीनी की ज़रुरत नहीं लगती..........




ऑफिस की छुट्टी की,
बाय बाय में....
तुम्हारा सुबह का हेलो,
अब तक मिला-जुला है..........
तुम घर में रहती हो,
या मेरे दिमाग में...........?



थोडा रूठ कर,
झगड़ कर, मेरे सीने पे,
मुक्के नहीं मारे आज.......
शाम उदास सी है...........!



छज्जे पे खड़ी तुम,
डांटती हो,
गली के बच्चों को,

मेरे कान में,
घुंघरू क्यों बजते हैं..........?




सब मुझे समंदर कहते हैं,
यहाँ मैं तुम में डूब जाता हूँ,..........
अजीब है न........?

1 comment:

kavesh said...

hmm sach kaha ...maine bhi kuch esa hi likha hai....