Monday, April 2, 2012

फर्क......


एक घनी बस्ती, इक गन्दा सा रास्ता,
एक दोयम सी दुनिया, पक्का सा वास्ता....

सुलगी सी परछाइयाँ, आगे आगे,
ठहरा ठहरा सा ये मुल्क बजाफ्ता.....

निरे ढूह बुर्ज ईमान के,
गिरी पड़ी वफादारियों की हवेलियाँ,
ज़मीर-मरीज़-ऐ-बे-दम हांफता......

रिजवान-ऐ-अवाम को,
अब कहाँ काफिरी की फ़िक्र,
पुर्जे कागज़ के महंगे, लहू सस्ता....

दरकार-ऐ-दीद और कुछ नहीं,
बस वो मख्लूकात-इंसान,
उसका छोटा ईमान का एक पुश्ता............

No comments: