Thursday, May 5, 2011

Pretty 1

ये फूल सा......
चेहरा देखता हूँ.......

या माजी के सर,
एक नया सेहरा देखता हूँ.........

तेरी मासूमियत देखता हूँ.......
या इसके बराबर..........
अपने लफ़्ज़ों की
अहमियत देखता हूँ...........

इतना कमसिन तो.....
गुलाब भी न देखा.......
तेरे चेहरे सा रोशन.......
कभी आफताब भी न देखा.........

देखता हूँ, जीता हूँ,
महसूस करता हूँ,
और..........

देखा इतना हुस्न की........
बता नहीं सकता......

प्यास महसूस होने लगी है,
फिर मेरी आँखों को.......
बस जता नहीं सकता.......

याद आ गए
भूले बिसरे से कुछ,
ज़ख़्मी खुशबुओं वाले दिन........

घूमता फिरता था,
तनहा..........
न जाने किस की तलाश में........
एक जिन्दा दिल लिए,
अपनी ही लाश में...........
तब भी एक चेहरा.....
मेरे रूबरू हो कर गुज़रा

मुझमे बहता रहा,
जिंदगी बन कर........

पहाड़ों की नदी सा,
उफनता गरजता.......

मेरे हर रंग को,
सजाते संवारते........
लाश को जिंदा कर,
इंसान बनाते...........

कई साल........

फिर चला गया......

जाते जाते,
मेरे ख्यालों की
नमी तक ले गया.......

क्या दिल, क्या जिगर........
अब तो सब पत्थर......

इन पत्थरों पर,
बहेगा कोई,
अब उम्मीद कम ही हैं............

हर बंजर घाटी में,
क्या सरिता बहती है भला..........?

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