पिछले कुछ दिन, प्रकृति की गोद में बिताने का सौभाग्य मिला....ईश्वर-प्रकृति-स्वयं सम्बन्ध का कुछ और स्पष्ट बोध हुआ.....लगा जैसे अकथनीय से संवाद हो रहा है....और मुझे मेरे चिर-प्रतीक्षित प्रश्नों के उत्तर मिल रहे है........!
ध्वनि, ऊष्मा......
तो कभी प्रकाश बन कर....
मिलता है.....
अनादि, अनंत.........
खेल जाती है,
प्रकृति के अधरों पर,
रहस्यमयी मुस्कान,
अपनी परिभाषा का,
गठन होते देख............
तो अनादि अनंत,
अपने अपररूप,
लेखनी से कहता है.......
देख मैं तू बन कर,
खुद को रच रहा हूँ........
विचित्र है, यह भी,
की अलौकिक, पराभौतिक से,
साक्षात्कार करने के,
मिलते हैं निर्देश,
लौकिक, भौतिक रचनाओं से........
कल्पना, भय और विश्वास की,
खिचड़ी परोस देते हैं,
धार्मिक ठग.......!
मन भर छक लेता है,
अनुचर समाज........
और यहाँ, वो कहता है,
अबोध विस्तार से..........
हूँ रहस्यमय.....
और उधृत होते होते भी.........
नया रहस्य रच रहा हूँ........
प्रश्न का उत्तर गढ़ रहा हूँ,
या उत्तर का......
प्रतिप्रश्न बन रहा हूँ......!
अति साधारण हूँ,
पर असाधारण लग रहा हूँ..........!
देख मैं तू बन कर,
खुद को रच रहा हूँ...........!
No comments:
Post a Comment