Sunday, June 28, 2015

बकाया

मुश्किलें सब हल्की
तेरा प्यार भारी सब पे
तेरी चाहत का सरमाया बहुत है
एक दिल को खो कर
तेरे इश्क में
मैंने पाया बहुत है

मेरे नाम को तरन्नुम कर
तेरे नाम को आयत बना
कभी मुस्कुराते कभी रोते
तूने भी मैंने भी
गाया बहुत है

इबादत तेरे दर के सिवा
रास न आई किसी चौखट
मंदिर-ओ-मसजिद ने
यूं तो बुलाया बहुत है

मुश्किलों से खीच निकाला
और थाम के हाथ
चला तू हमकदम
उन अश्क से भारी दिनों में भी
तूने हंसाया बहुत है

ज़ख्म भी खुश हो गए
तेरी छुअन पा के
हाथ रख दिया, सहलाया,
......बहुत है

जान दे के भी क़र्ज़ न चुकेगा
तेरा मुझ पे बकाया बहुत है...!

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