Monday, February 23, 2015

जब भी मिल जाता है तू....

भला हंसिये न
तो क्या कीजे
मेरी मुश्किलों की फिसलन पे
जानबूझ कर फिसल जाता है तू

मैं भी रंगीन होता हूँ
जब भी मिल जाता है तू

नहीं कहता,
कि तेरे मिलने से
हालात बदल जाते हैं

पर बेशक कोई दिन
कोई शाम बदल जाता है तू

जिंदगी में दम आ जाता है
जरा ही सही
जब भी मेरे साथ
पीने निकल जाता है तू

यूं तो मुझे लौटना ही होता है
मेरी खिजाओं में
पर मैं भी रंगीन होता हूँ
जब मिल जाता है तू

उतने दुखड़े नहीं बिखरते
उतने शिकवे नहीं रिसते
एहसास पे हर दफा
रेशमी पैबंद सिल जाता है तू

मैं और शाम दोनों....रंगीन
जब भी मिल जाता है तू......।

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