Sunday, March 24, 2013

बस ऐसे ही रहना......।

न हवाओं के रुख यूं ही रहेंगे,
न वादियों की खुशबुएं ही,
मुस्कुरायेंगी हमेशा...!

मैं बस यही रहूँगा..!

कभी कभी सूरज भी,
मद्धम हुआ करेगा,
और चाँद का दामन,
नम हुआ करेगा....!

मैं बस यही रहूँगा..!

शोखियां दो जानू,
सजदाफरोश कभी,
और ये गुरूर कभी,
ला-वहम दुआ करेगा...!

और मैं बस यही रहूँगा..!
रात की गहरी नीली चादरों में,
लिपटे पड़े सन्नाटे को,
कभी तुम छन से तोड़ दोगे,
और कभी वो मुझे....।

सब वजूद बदलेंगे,
सावन उतरेंगे चढ़ेंगे,

पर मैं बस यही रहूँगा..।

जब सुबह की पहली किरण,
हौले से पेड़ की फुनगी पर,
मखमली पत्तियों पे,
उतर उतर आएगी....।

सुर्ख, सूजी, उनींदी,
चार आँखे अपनी अपनी,
कहानियों के ढेर,
फिर अश्कों से तर करेंगी....।

यूं तो तुम्हारी नज़र,
मेरी जानिब बदल गयी होगी,
फिर भी मैं यही रहूँगा...।

तुमने ही तो कहा था,
सोना, हमेशा ऐसे ही रहना......!

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

बदलाव तो नियम है श्रृष्टि का .. फिर प्राकृति कैसे एह रह सकती है ...