Monday, January 12, 2009

मेरे अंतस की पीड़ा को जानेगा कौन,
कहानी जैसी है,
तो सच मानेगा कौन.............

मैंने ख़ुद में फरहाद को देखा,
तुझमें मीरा का रूप,
अब जीवन की जलती धरा है पैरों तले,
सर पर विचारों की धूप..........

मैं बरसों से जैसे का तैसा,
तनिक प्रेम का प्यासा
न भाव में प्राण शेष रहे,
न ह्रदय में आशा.........

तो आज सारे भाव निष्प्राण,
पर मानस में कोलाहल,
तुमसे ही जीवन, जीवन सा जटिल,
अन्यथा मृत्यु सा सरल.........................

1 comment:

वर्तिका said...

बहुत बहुत खूब.... विचारों की धुप में पके हुए भाव, और सुंदर हो गए हैं... :)