Monday, April 28, 2025

परिधि

विभेद जिसे समझने में युगों लगे,
अनंत और शून्यता
मिश्रित कर दी हम ने..!

यह हास्य का नया आयाम है
कि अपर्मिति की सीमा,
तय की हमारी मूर्खता ने..!!

जब लाभ हानि प्राथमिक,
मानवता गौण हो गयी..!

जब व्यथा और घृणा,
ससंचित होने लगे
और प्रेम व्यापार हो गया..!

जब सब त्रिकोणमिति शुष्क है,
तो तुम्हारी आद्रता कैसे,
संरक्षित हो सकी?

कैसे भाग्य के समीकरण ने,
विस्मयकारी हल दिया है?

कैसे क्षेत्रफल,
बढ़ गया अकस्मात्,
भाग्य का?

कैसे विन्यासों को,
आवृत्तियों में,
पुनर्गठित किया विधि ने?

कैसे? मैं केंद्र,
जीवन वृत्त, और
"परिधि" संसार हो गया..!