मैं
अर्थ की परिभाषा,
ढूंढता
रहा......
तुमने
इति को रच दिया.......?
मैं
शब्दों में वाक्य ढूंढ रहा था,
तुमने
छंद रच दिया......?
ये
निष्पादन, ये रचनाएं,
कितनी
विलक्षण और प्राकृतिक हैं,
पर
तुम्हारा स्वभाव......?
यही
प्रश्न लिए......!
बुद्ध
भटके, इशु सूली चढ़े,
तो
अब कौन....?
तुमसे
मैंने अपने सम्बन्ध का,
मूल
खोज लिया है.......!
रचो,
प्रफुल्लित हो,
और
नष्ट करो......!
तुम्हारी
इस क्रीडा में,
मेरा
आनंद तो नहीं,
पर
हाँ, भय है.............!
अनंत
भय,
और
पीड़ादायी....!