आफत तमाम आ पडीं,
रास्ता कोई नज़र आता नही ......
उम्र बीती जो तन्हाइयों में,
मज़ा-ओ-हम्नफ्सी में अब,
गुज़र आता नहीं ..........
वीरानियों में,
शब् अँधेरी ही आती है इधर .......
चराग-ए-उम्मीद लिए,
कोई बशर आता नहीं ........
मेरा साया दगाबाज़ निकला,
अब तो आस पास भी,
नज़र आता नहीं ............
फ़क़त एक ख़ुशी को तरसता,
मेरे आँगन का शज़र .......
उफ़ दौर-ए- गम,
क्यों, ये गुज़र जाता नहीं .......
छोटी छोटी तंजिया मुस्कुराहटों का,
कुछ तो राज़ है जरूर,
इस शहर में तफसील से,
कोई मुस्कुराता नहीं .........
रास्ता कोई नज़र आता नही ......
उम्र बीती जो तन्हाइयों में,
मज़ा-ओ-हम्नफ्सी में अब,
गुज़र आता नहीं ..........
वीरानियों में,
शब् अँधेरी ही आती है इधर .......
चराग-ए-उम्मीद लिए,
कोई बशर आता नहीं ........
मेरा साया दगाबाज़ निकला,
अब तो आस पास भी,
नज़र आता नहीं ............
फ़क़त एक ख़ुशी को तरसता,
मेरे आँगन का शज़र .......
उफ़ दौर-ए- गम,
क्यों, ये गुज़र जाता नहीं .......
छोटी छोटी तंजिया मुस्कुराहटों का,
कुछ तो राज़ है जरूर,
इस शहर में तफसील से,
कोई मुस्कुराता नहीं .........