उदास शाम की गोद में बैठ,
जुबां और हलक की प्यास,
ना जाने किस किस ज़हर से बुझाकर,
पर फिर भी प्यासे रह कर,
वो जो,
देर रात तक अपने तकिये,
गीले करते हैं...........
जिन्हें सुबह आ कर,
थपथपाती है......
माँ का प्यार देती है........
और कहती है........
बेटा उठ आज तुझे फिर,
दिन भर की जंग लड़नी है........
तू थक भी कैसे सकता है,
MNCs के गुलामों को,
थकने की आज़ादी नहीं है..........!